Changes

<poem>
'''अपनी बात '''/ वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’
स्व. दुष्यन्त कुमार जी के ग़ज़ल संग्रह ‘साये में धूप’ से प्रभावित होकर मैंने 1991 से ग़ज़लें कहना शुरू किया और आज तक कह रहा हूँ । इस संग्रह में 1991 से 1997 तक मेरे द्वारा कही गई ग़ज़लों में से वे ग़ज़लें हैं जो मुझे कुछ ठीक-ठाक लगती हैं और लगता है कि इन्हें दूसरों को भी पढ़वाया जा सकता है ।
मैं अपने परिवार-जनों के प्रति भी कृतज्ञ हूँ जिन्होंने मेरे कविता-कर्म के निर्वाह के कारण उत्पन्न असुविधाओं पर कभी ध्यान नहीं दिया वरन हर संभव सहयोग प्रदान किया ।
अन्त में मैं अयन प्रकाशन के कर्ता-धर्ता श्री भूपाल सूद और उनके परिवार-जनों के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने ‘शेष बची चौथाई रात’ के इस संस्करण को अत्यन्त आकर्षक रूप प्रदान करने के लिए अथम अथक परिश्रम किया ।
कुल मिला कर तमाम विपरीत स्थितियों से जूझते हुए आपकी पुस्तक ‘शेष बची चौथाई रात’ अन्ततः आपके हाथों तक पहुंच गई है, यह प्रसन्नता का विषय है पहुंचती भी क्यों नहीं ? गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते हैं-
'''प्रभु प्रताप कछु दुर्लभ नाहीं'''
'''-वीरेन्द्र खरे‘अकेला’खरे ‘अकेला’'''
21 जनवरी 1998
कमला कॉलोनी,
338
edits