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06:51, 7 फ़रवरी 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मुकेश मानस
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<poem>
हम चले जाते हैं उसकी आगोश में
छूटता जाता है हमसे हमारा भी अहसास
विस्मृत होती जाती है याददाश्त
पसरता जाता है एक मौन अकंप
वहां न कोई आवाज़ होती है न क्रिया और न गति कोई
नींद की जगह में होते हैं जब हम तब ऐसा ही होता है
कुछ दृश्य उभरते हैं पटल पर
अनंत रंगों की अनंत आभा बिखराते हुए
एक कहानी सी सजीव होने लगती है
कोई संगीत बजने लगने लगता है अनजाना अनसुना सा
एक अलग ही तरह की दुनिया होती है
जहां न देश होता है न काल और न वातावरण
ख्वाब ऐसे ही आते हैं नींद की दुनिया में
नींद के बाद जागना ही होता है
ख्वाब से सच की दुनिया में आना ही होता है
कभी दुख होता है तो कभी अफसोस
कभी आंसू निकल पड़ते हैं आंख से
तो कभी खुशी होती है
खुद को वास्तविक दुनिया में
ख्वाब की दुनिया से अलग पाकर
क्या होता होगा कैसा लगता होगा
जब कोई नींद से जागे ही नहीं
जब कोई नींद में ही रह जाये
जब कोई ख्वाब में ही रह जाये
और अगर वो हमारा बहुत प्यारा सा कवि हो
या हो बहुत मनभावन सा गायक
अगर मैं कभी रह गया नींद में या के किसी ख्वाब में
तो मुझे पता चल जायेगा
कि कया होता है नींद में ही रह जाना
ख्वाब में ही बस जाना
कैसा होता है कभी नहीं जागना
ख्वाब से कभी हकीकत में नहीं आना
10-10-2010
<poem>