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अचानक देवत्व / सुधीर सक्सेना
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08:02, 8 फ़रवरी 2012
उसने कहा
उफ्फ, इत्ती गर्मी
कुछ करें
कि बारिश हो
अचानक
मैंने मन ही मन टेरा मेघों को
आकाश से बरसा अचानक झमाझम नेह
उसकी दृष्टि में
अचानक
यूं
यूँ
मैं अपने
कद
क़द
से बड़ा हुआ
प्रकृति की औचक लीला से
अचानक एक लौकिक पुरूष ने पाया देवत्व
.
</poem>
अनिल जनविजय
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