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ग़द्दारे-क़ौम और वतन / सीमाब अकबराबादी
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03:15, 20 फ़रवरी 2012
<poem>
किया था
जमा
जम’अ
जाँबाज़ों ने जिसको
जाँफ़रोशी
जाँ-फ़रोशी
से
रुपहले चन्द टुकडों पर वो इज़्ज़त बेच दी तूने
कोई तुझ-सा भी
बेग़ैरत
बे-ग़ैरत
ज़माने में कहाँ होगा?भरे बाज़ार में तक़दीरे
-
मिल्लत बेच दी तूने
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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