क्या ही रिज़वान से लड़ाई होगी
घर तेरा ख़ुल्द <ref>स्वर्ग </ref> में गर याद आया
आह वो जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ
फिर तेरे कूचे को जाता है ख़्याल
दिल-ए-ग़ुमगश्ता मगर याद् याद आया
कोई वीरानी-सी-वीराँई वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया
मैं ने मैंने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
संग उठाया था के सर याद आया
<ref> </ref>
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