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कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे / जिगर मुरादाबादी
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03:30, 23 फ़रवरी 2012
दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ <ref>विरह वेदना </ref> के ये सख़्त मरहले<ref>समस्याएँ </ref>
हैरां
<ref>विस्मित </ref>
हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे
इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात<ref> समय निकलने के बाद की क्षतिपूर्ति</ref> देखना
द्विजेन्द्र द्विज
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