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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जिगर मुरादाबादी }} {{KKCatGhazal}} <poem> दिले हज...' के साथ नया पन्ना बनाया
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|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
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दिले हजीं <ref> </ref> की तमन्ना दिले-हजीं <ref> </ref> में रही
ये जिस ज़मीं की थी दुनिया उसी ज़मीं में रही

हिजाब <ref>पर्दा </ref> बन न गईं हों हक़ीक़तें <ref>वास्तविकताएँ </ref> बाहम <ref> परस्पर</ref>
कि बेसबब <ref>अकारण </ref> तो कशाकश <ref> खींचातानी</ref> न कुफ़्रो-दीं <ref>धर-अधर्म </ref> में रही

सरे-नियाज़ <ref>श्रद्धापूर्ण सर </ref> न जब तक किसी के दर पे झुका
बराबर इक ख़लिश -सी <ref> चुभन</ref> मिरी जबीं <ref>माथा </ref> पे रही
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