1,067 bytes added,
13:15, 23 फ़रवरी 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दिले हजीं <ref> </ref> की तमन्ना दिले-हजीं <ref> </ref> में रही
ये जिस ज़मीं की थी दुनिया उसी ज़मीं में रही
हिजाब <ref>पर्दा </ref> बन न गईं हों हक़ीक़तें <ref>वास्तविकताएँ </ref> बाहम <ref> परस्पर</ref>
कि बेसबब <ref>अकारण </ref> तो कशाकश <ref> खींचातानी</ref> न कुफ़्रो-दीं <ref>धर-अधर्म </ref> में रही
सरे-नियाज़ <ref>श्रद्धापूर्ण सर </ref> न जब तक किसी के दर पे झुका
बराबर इक ख़लिश -सी <ref> चुभन</ref> मिरी जबीं <ref>माथा </ref> पे रही
</poem>
{{KKMeaning}}