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|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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बुरे की हार हो जाती है अच्छा जीत जाता है
मगर इस दौर में देखा है पैसा जीत जाता है

बड़ों के क़हक़हे ग़ायब, बड़ों की मुस्कराहट गुम
हँसी की बात आती है तो बच्चा जीत जाता है

खड़ी हो फ़ौज चाहे सामने काले अँधेरों की
मगर उससे तो इक दीपक अकेला जीत जाता है

हमेशा जीत निश्चित तो नहीं है तेज़ धावक की
रवानी हो जो जीवन में तो कछुआ जीत जाता है

ये भोजन के लिए दौड़ी वो जीवन के लिए दौड़ा
तभी इस दौड़ में बिल्ली से चूहा जीत जाता है

</poem>‌
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