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08:42, 26 फ़रवरी 2012 {{kkGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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<poem>
खेत सारे छिन गए घर - बार छोटा रह गया
गाँव मेरा शहर का बस इक मुहल्ला रह गया
सावधानी है बहुत ,खुलकर कोई मिलता नहीं
आदमी पर आदमी का ये भरोसा रह गया
प्रेम ने तोड़ीं हमेशा जाति – मज़हब की हदें
पर ज़माना आज तक इनमें ही उलझा रह गया
बेशक़ीमत चीज़ तो गहराइयों में थी छिपी
डर गया जो,वो किनारे पर ही बैठा रह गया
जिससे अपनी ख़ुद की रखवाली भी हो सकती नहीं
घर की रखवाली की ख़ातिर वो ही बूढ़ा रह गया
</poem>