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14:50, 27 फ़रवरी 2012 {{kkGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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<poem>
कटा जो मुश्किलों से उस सफ़र की याद आती है
मुझे काँटों भरी टेढ़ी डगर की याद आती है
घरों में बैठकर बेकार अच्छा भी नहीं लगता
निकल जाओ अगर घर से तो घर की याद आती है
कटाकर हाथ, दुनिया को अचम्भा दे गए कैसा
इमारत देखकर उनके हुनर की याद आती है
कभी इंसान को दिल चैन से रहने नहीं देता
इधर की याद आती है, उधर की याद आती है
मैं अब भी आँधियों को कोसता हूँ खूब जी भर के
मुझे जब नीम के बूढ़े शज़र की याद आती है
ज़रा सी चीज़ भी कितना कठिन उनके लिए तब थी
पिता की ज़िन्दगी के उस समर की याद आती है
</poem>