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'''राजा बांच रहा,'''
अखबारेां अख़बारों में प्रगति राज्य की
राजा बांच रहा
चढ़ा शनीचर प्रजा शीश पर
नंगा नाच रहा
नहर गांव तक पर पानी का
मीलों पता नहीं,
सिल्ट सफायी का धन पहुचा पहुंचा
जाकर और कहीं
खुद की हुयी शिकायत खुद ही
न्यायालय के दरवाजों की
ऊंची ड्योढ़ी है
जिसके हाथेंा हांथों में चाबुक है
उसकी कौडी है,
सेंध लगा दी उन हाथों ने कांजी के घर धन कुबेर का जिन पर नाज डंका बाज रहा
अपराधों का ग्राफ घटा यह
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