सूरदास प्रभु अंबुज-लोचन, फिरि-फिरि चितवत ब्रज-जन-कोद ॥<br><br>
भावार्थ :-- हरिका बाल-विनोद बहुत प्रिय लगता है । घनस्याम और बलरामके मुखोंको बलराम के मुखों को देख-देखकर माता रोहिणी और मैया यशोदा आनन्द से प्रमुदित होती हैं । आँगनकी कीचसे आँगन की कीच से दोनों भाइयों के शरीर सने शोभित हो रहे हैं । चलते समय नूपुरकी नूपुर की ध्वनि होती, जिसे सुनकर मनमें मन में अत्यन्त आल्हाद होता है । श्रीहरि उछल-उछलकर माताओंकी गोदमें माताओं की गोद में बैठते हैं और उनके उत्कृष्ट स्नेह को बढ़ाते हैं । आनन्दकन्दआनन्द कन्द, समस्त सुखोंके सुखों के दाता हरि रात-दिन क्रीड़ाके क्रीड़ा के आनन्द रसमें रस में भीगे रहते हैं । सूरदासके सूरदास के ये कमललोचन स्वामी बार-बार मुड़-मुड़कर व्रजजनोंकी व्रज जनों की ओर देखते हैं ।