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/* पद्मावत की कथा */
सन् नरे सौ र्तृतालिस अहा।
 
कथा आरंभ बैन कवि कहा।।
 
 
सिंहलद्वीप पद्मिनी रानी।
 
रतनसेन चितउर गढ़ आनी।।
अलाउद्दीन देहली सुल्तानू।
 
राघव चेतन कीन्ह बखानू।।
 
सुना साहि गढ़ छेंकन आई।
 
हिंदू तुरकन्ह भई लराई।।
 
आदि अंत जस गाथा अहै।
 
लिखि भासा चौपाई कहै।।
कवि वियास कंवला रसपूरी।
 
दूरि सो निया नियर सो दूरी।।
 
नियरे दूर फूल जस कांटा।
 
दूरि सो नियारे जस गुरु चांटा।।
भंवर आई बन खण्ड सन लई कंवल के बास।
 
दादूर बास न पावई भलहि जो आछै पास।।
कवि इस पंक्ति के द्वारा बताना चाहता है कि यहाँ एक- से- एक बढ़कर कवि हुए हैं और यह कथा भी रस से भरी पड़ी है।
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