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फ़िराक़ गोरखपुरी / परिचय

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जेल से छूटने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस के दफ्तर में अवर सचिव की जगह दिला दी। बाद में नेहरू जी के यूरोप चले जाने के बाद अवर सचिव का पद छोड़ दिया। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में १९३० से लेकर १९५९ तक अंग्रेजी के अध्यापक रहे।
<ref>{{cite web |url=http://www.milansagar.com/kobi-firaqgorakhpuri.html|title=फ़िराक़ गोरखपुरी|accessmonthday=[[४ दिसंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=मिलन सागर|language=}}</ref> * फिराक जी [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] के अंग्रेजी विभाग में अध्यापक रहे।  * साहित्य अकादमी सदस्य आधिकारिक सूची
<ref>[http://www.iconofindia.com/sahitya-akademi/fello.htm#awa02 फ़ैलोज़] [[साहित्य अकादमी]] सदस्य, आधिकारिक सूची</ref>
==शायरी ==
फिराक गोरखपुरी की शायरी में गुल-ए-नगमा, मश्अल, रूहे-कायनात, नग्म-ए-साज, गजालिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागां, शोअला व साज, हजार दास्तान, बज्मे जिन्दगी रंगे शायरी के साथ हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधीरात, परछाइयाँ और तरान-ए-इश्क जैसी खूबसूरत नज्में और सत्यम् शिवम् सुन्दरम् जैसी रुबाइयों की रचना फिराक साहब ने की है। उन्होंने एक उपन्यास साधु और कुटिया और कई कहानियाँ भी लिखी हैं। उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी भाषा में दस गद्य कृतियां भी प्रकाशित हुई हैं।
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