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किसे पता था? / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
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16:11, 4 मार्च 2012
क्या मालूम था
श्रम के
हाथेंा
हाथों
रूखी सूखी रोटी होगी,
नंगे
होंगे
पांव, बदन पर
केवल फटी लंगोटी होगी
छत के नाम शीश नभ होगा
किस्मत ऐसी
खेाटी
खोटी
होगी
</poem>
Sheelendra
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