Changes

बाँस-बाँस पानी है
काग़ज़ की नाव
पैसों पर पैसा पा डोल रहे
अंगद के पाँव
सुविधाएँ माँग रही रहीं
मनमाने दाम,
खोखली व्यवस्था के
राजा के गाँव
उगल रह रहे होंठों से
पल-पल पर ज्वाल
लोकतंत्र घाटी के
वादों की छाँव
झूठों की को राजसभा
सच्चों को जेल
अपराधी खेल रहे
66
edits