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सुबहों पर धुँध भरे / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
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15:37, 5 मार्च 2012
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<poem>
सुबहों पर
धुँध
धुंध
भरे
मौसम का राज है
लगता है वक़्त आज
रखा ताज है
सुबहों पर
धुँध
धुंध
भरे
मौसम का राज है
</poem>
Sheelendra
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