Changes
4 bytes removed,
16:12, 5 मार्च 2012
बन्दर के हाथों में
काँच के खिलौने
क़िस्मत के दरवाज़े
खोल रहे बौने
काग़ज़ ने फैलाई
शतरंजी साज़िश
बारूदी ढेरों पर
सुलगाई माचिस
सतरंगी सपने हैं
टाट के बिछौने
शहरों के जंगल का
निष्प्रभ है सूरज
सड़को सडकों पर घूम रहा
बौराया धीरज
मौसम के चेहरे पर
ठुकी हुई कीलें
वासन्ती झोंको झोकों पर
मँडराती चीलें