==साहित्य-सृजन==
राम प्रसाद बिस्मिल ने यहाँ के एक छोटे से गाँव रामपुर जागीर (रामपुर जहाँगीर) में शरण ली और कई महीने यहाँ के निर्जन जंगलों में घूमते हुए गाँव के गुर्जर लोगों की गाय भैंस चराईं। इसका बड़ा रोचक वर्णन उन्होंने अपनी आत्मकथा के द्वितीय खण्ड : स्वदेश प्रेम (उपशीर्षक - पलायनावस्था) में किया है। यहीं रहकर उन्होंने अपना क्रान्तिकारी उपन्यास बोल्शेविकों की करतूत लिखा। वस्तुतः यह उपन्यास मूलरूप से बांग्ला भाषा में लिखित पुस्तक निहिलिस्ट-रहस्य का हिन्दी - अनुवाद है जिसकी भाषा और शैली दोनों ही बड़ी रोचक हैं। अरविन्द घोष की एक अति उत्तम बांग्ला पुस्तक यौगिक साधन का हिन्दी - अनुवाद भी उन्होंने भूमिगत रहते हुए ही किया था। यमुना किनारे की खादर जमीन उन दिनों पुलिस से बचने के लिये सुरक्षित समझी जाती थी अत: बिस्मिल ने उस निरापद स्थान का भरपूर उपयोग किया। वर्तमान समय में यह गाँव चूँकि ग्रेटर नोएडा के बीटा वन सेक्टर के अन्तर्गत आता है अत: उत्तर प्रदेश सरकार ने रामपुर जागीर गाँव के वन विभाग की जमीन पर उनकी स्मृति में अमर शहीद पं० राम प्रसाद बिस्मिल उद्यान[7] विकसित कर दिया है। जिसकी देखरेख ग्रेटर नोएडा प्रशासन के वित्त-पोषण से प्रदेश का वन विभाग करता है। 'बिस्मिल' की एक विशेषता यह भी थी कि वे किसी भी स्थान पर अधिक दिनों तक ठहरते न थे। कुछ दिन रामपुर जागीर में रहकर अपनी सगी बहन शास्त्री देवी के गाँव कोसमा जिला मैनपुरी में भी रहे। मजे की बात यह कि उनकी अपनी बहन तक उन्हें पहचान न पायीं। कोसमा से चलकर बाह पहुँचे कुछ दिन बाह रहे फिर वहाँ से पिनहट, आगरा होते हुए ग्वालियर रियासत स्थित अपने दादा के गाँव बरबई (जिला मुरैना मध्य प्रदेश) चले गये और वहाँ किसान के भेस में रहकर कुछ दिनों हल भी चलाया। जब अपने घर वाले ही उन्हें न पहचान पाये तो बेचारी पुलिस की क्या औकात! पलायनावस्था में रहते हुए उन्होंने १९१८ में प्रकाशित अँग्रेजी पुस्तक दि ग्रेण्डमदर ऑफ रसियन रिवोल्यूशन का हिन्दी - अनुवाद इतना अच्छा किया कि उनके सभी साथियों को यह पुस्तक बहुत पसन्द आयी। इस पुस्तक का नाम उन्होंने कैथेराइन रखा था। इतना ही नहीं, बिस्मिल ने सुशीलमाला सीरीज से कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित कीं थीं जिनमें मन की लहर नामक कविताओं का संग्रह, कैथेराइन या स्वाधीनता की देवी - कैथेराइन ब्रश्कोवस्की की संक्षिप्त जीवनी, स्वदेशी रंग व उपरोक्त बोल्शेविकों की करतूत नामक उपन्यास प्रमुख थे। स्वदेशी रंग के अतिरिक्त अन्य तीनों पुस्तकें आम पाठकों के लिये आजकल पुस्तकालयों में उपलब्ध हैं।
'बिस्मिल' की एक विशेषता यह भी थी कि वे किसी भी स्थान पर अधिक दिनों तक ठहरते न थे। कुछ दिन रामपुर जागीर में रहकर अपनी सगी बहन शास्त्री देवी के गाँव कोसमा जिला मैनपुरी में भी रहे। मजे की बात यह कि उनकी अपनी बहन तक उन्हें पहचान न पायीं। कोसमा से चलकर बाह पहुँचे कुछ दिन बाह रहे फिर वहाँ से पिनहट, आगरा होते हुए ग्वालियर रियासत स्थित अपने दादा के गाँव बरबई (जिला मुरैना [[मध्य प्रदेश]]) चले गये और वहाँ किसान के भेस में रहकर कुछ दिनों हल भी चलाया। जब अपने घर वाले ही उन्हें न पहचान पाये तो बेचारी पुलिस की क्या मजाल!
पलायनावस्था में रहते हुए उन्होंने १९१८ में प्रकाशित अँग्रेजी पुस्तक दि ग्रेण्डमदर ऑफ रसियन रिवोल्यूशन का हिन्दी - अनुवाद इतना अच्छा किया कि उनके सभी साथियों को यह पुस्तक बहुत पसन्द आयी। इस पुस्तक का नाम उन्होंने कैथेराइन रखा था।
इतना ही नहीं, बिस्मिल ने सुशीलमाला सीरीज से कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित कीं थीं जिनमें [[मन की लहर / राम प्रसाद बिस्मिल]] नामक (कविताओं का संग्रह), कैथेराइन या स्वाधीनता की देवी - कैथेराइन ब्रश्कोवस्की की संक्षिप्त जीवनी, स्वदेशी रंग व उपरोक्त बोल्शेविकों की करतूत नामक उपन्यास प्रमुख थे। स्वदेशी रंग के अतिरिक्त अन्य तीनों पुस्तकें आम पाठकों के लिये आजकल पुस्तकालयों में उपलब्ध हैं।
=="दि रिवोल्यूशनरी" (घोषणा-पत्र)==