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<Poem>
देखो, आईं हैं नदिया की लहरें
अपना घर-वर छोड़ के
डोलें बस्ती-बस्ती, जंगल-जंगल
रिश्ते-बंधन तोड़ के
मीठी बातें उदगम की
उदगम पर ही छूट गईं
भावों की लड़ियाँ कैसे
राहों में ही टूट गईं?
कितनी निर्मोही, यों बनी बटोहीमीठी यादें अपनों से मुँह मोड़ के!उदगम कीपानी में घुलती जातीं सूरज की किरणें-कलियाँ लहरों पर खिलती जातीं
सीखा तपना पत्थर परवर्तमान के काँटों पर चलते रहनाहोंठ चूमती कि प्यास बुझाना प्यासे कीसीखा खुद जलते रहनामुँह अतीत से मोड़ के!
है बहती धारा में हर पत्थर का भी बहते जाना प्यास बुझानातापस की सीखा खुद जलते जाना चाहा कब प्रतिदान लहर ने
दरकी धरती जोड़ के?
मीलों लम्बा अभी सफ़र पड़ासाँसें हैं कुछ ही शेष बचींअब भी उत्साह बना बाकी हैउत्साह अभी सच है थोड़ी -सी है कमर लची
वरण करेंगी कभी मुहाने पहुंचेंगी लहरेंसिन्धु का सारी परतें पूर्वाग्रह सब तोड़ के
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