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22:19, 11 मार्च 2012 {{KKRachna
|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
}}
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<Poem>
बस नहीं चलता कोई भी अब हिमाक़त है तो है
एक पत्थर के सनम से ही मुहब्बत है तो है
मैंने हक़ कि बात कि थी भीक मत समझो इसे
आपकी नज़रों में साहब ये बग़ावत है तो है
अब मुक़द्दर ही करेगा फैसला अंजाम का
दुश्मनों से प्यार करना मेरी आदत है तो है
जनता हूँ आस्तीं में सांप हैं तो क्या करूँ
वो डसेंगे तो डसें ये उनकी फितरत है तो है
ऐ 'मनु' दिल का सुकूँ है मेरी ख़ातिर शायरी
अब मेरी क़िस्मत में ये इनामो-शोहरत है तो है</poem>