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22:23, 11 मार्च 2012 {{KKRachna
|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
कट गए 'पर' उड़ान बाक़ी है
उस परिंदे में जान बाक़ी है
घाव तो सूख चुका है लेकिन
दिल पे अब भी निशान बाक़ी है
वक़्त ने होसला तो तोड़ दिया
मुहँ में अब भी ज़ुबान बाक़ी है
हम फ़क़ीरों के पास कुछ भी नहीं
आन बाक़ी है, शान बाक़ी है
मेरा सब कुछ तो बिक गया है 'मनु'
ये पुराना मकान बाक़ी है</poem>