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22:33, 11 मार्च 2012 {{KKRachna
|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
मजबूरियों के नाम का बाज़ार ढूँढने
जाता हूँ रोज़ अपना खरीदार ढूँढने
मुमिकन तो नही लगता है फिर भी यकीं है
घर से तो चल दिया हूँ रोज़गार ढूँढने
मैं उसको ढूँढ-ढूँढ के ख़ुद खो गया कहीं
ऐ काश ! मुझको आये मेरा यार ढूँढने
ये जानकार भी चोट तेरे दिल पे लगेगी
पागल कहाँ पे आ गया तू प्यार ढूँढने
इस शहर की रंगीनियों में खो गया कहीं
आया था मैं तो बिछड़ा हुआ यार ढूँढने
वो कहके गया था कि 'मनु' अब न मिलेगा
मैं फिर भी चला जाता हूँ हर बार ढूँढने</poem>