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तोड़े नयी जमीन/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
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16:03, 13 मार्च 2012
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<poem>
आओ
आओं
हम सब मिल आपस में
एक करें यह काम,
अंधियारे के माथे पर लिख दें
तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर
सबकी प्यास हरें
।
,
द्वेष, घृणा, कुंठा, पीड़ा, का
दिन-दिन
हृास
ह्रास
करें
।
,
धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी
सबको कर अभिराम ।
Sheelendra
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