{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
मेरे भैयामनुआं
जीवन है तो
जीवन-भर पड़ता है तपना
हाड़जीवन-मांस कीपंछी देह निरालीबात न माने रहती हरदमबजती थालीक्या है पायाक्या है खोयाचंचल कितना- कभी नाप पाया क्या नपना !नभ को ताने
मनुवा पंछीइसे सिखा तू बात न मानेतिरना-उड़ना चंचल कितनाऔर दिखा तू सब जग जानेकभी डूबताकभी तैरताखुली आंख से देखे सुन्दर सपना!
एक तंबूरानदिया जैसी सरगम चाल निराली भरी हुई है या है खाली कितनी उथलीकितनी गहरी तू ही नापे तू ही नपना उम्र तम्बूरा तार न बोलेहरी नाम केठीक लगें सुर सब रस घोलेतो मुँह खोले बिन गुरुवर के आओ बैठोजाने कैसे जानो-समझोक्या कुछ भीतर कर लो जी निर्मल मन क्या कुछ अपना
</poem>