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06:18, 18 मार्च 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
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<Poem>
बन कर ध्वज हम
इस धरती के
अम्बर में फहराएँ
मेघा बन कर
जीवन जल दें
सागर-सा लहराएँ
टूटे-फूटे
बासन घर के
अपनी व्यथा सुनाते
सभी अधूरे सपने
मिल कर
अक्सर हमें रुलाते
पथ के कंटकवन को
आओ
मिल कर आज जराएँ
बाग़ लगाएं
फूल बनें हम
कोयल-सा कुछ गाएँ
भोर किरण का
रूप धरें हम
तम को दूर भगाएँ
चुन-चुन कर
अनुभव के मोती
जोड़ें सभी शिराएँ
</poem>