1,133 bytes added,
08:00, 18 मार्च 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
पिता हमाए
मैं रोया
तो मुझे चुपाया
'बिल्ली आई'
कह बहलाया
मुश्किल में
जीवन जीने की-
कला सिखाए
पिता हमाए
नदिया में मुझको
नहलाया
झूले में मुझको
झुलवाया
मेरी जिद पर
गोद उठाकर
मुझे मनाए
पिता हमाए
जब भी फसली
चीजें लाते
सब से पहले
मुझे खिलाते
कभी-कभी खुद
भूखे रह कर
मुझे खिलाए
पिता हमाए
शब्द सुना
पापा का जब से
मैं भी पिता
बन गया तब से
मधुर-मधुर-सी
संस्मृयों में
अब तक छाए
पिता हमाए
</poem>