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बनकर बंजारे / अवनीश सिंह चौहान
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बनकर बंजारे
फिरते-रहते
हम गली-गली
!
जलती भट्ठी
मोड़ें वैसा
धरे निहाई
हम अली-बली
!
नए-नए-
अपनी फूटी
खा भी लेते
हम भुनी-जली
!
राहगीर मिल
समय सहारा
जो सुन लेते
हम बुरी-भली
!
</poem>
Abnish
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