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सोई सूर प्रगट या ब्रज मैं, गोकुल-गोप-बिहारी (हो) !<br><br>
भावार्थ :-- अविज्ञात-गति प्रभुकी प्रभु की यह अद्भुत लीला तो देखो ! (इन्होंने) कैसा रूपधारण किया है ! तीनों लोक जिसके उदररूपी भवनमें भवन में रहते हैं, वह (अवतार लेकर)सूपके कोनेमें सूप के कोने में पड़ा था । जिसकी (नाभिसे नाभि से निकले, कमलनालसे ब्रह्माजी कमलनाल से ब्रह्मा जी तथा ब्रह्माजीसेसभी ब्रह्मा जी से सभी देवता उत्पन्न हुए, जिन्होंने सभी योग और व्रतोंकी साधनाकीव्रतों की साधना की, उसी (परम पुरुष) की नालको नाल को काटकर व्रजयुवतियोंने व्रज युवतियों ने बँटे हुए धागे से बाँधा । जिस श्रीमुखका दर्शन करने के लिये आराधनामें आराधना में एकाग्र होकर शंकरजी शंकर जी समाधि लगाते हैं, दूधकी दूध की लारसे सने उसी मुखका मुख का व्रजरानी यशोदाजी यशोदा जी चुम्बन करती हैं । जिन कानों से भक्तों की विपत्ति सुनकर गरुड़को गरुड़ को भी छोड़कर प्रभु दौड़ पड़ते हैं, उन्हीं कानोंके कानों के निकट मुख ले जाकर यशोदाजी यशोदा जी थपकी देते हुए (लोरी) गाती हैं । जो पूरे विश्वका विश्व का भरण-पोषण करते हैं और जो सर्वसमर्थ सर्व समर्थ हैं, वे मक्खन पानेके पाने के लिये हठ कर रहे हैं । जिनके विराट्‌रूपके विराट्‌रूप के एक-एक रोममें रोम में कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड हैं, वे पलनेमें पलने में पड़े हैं । जिस भुजाके बलसे भुजा के बल से हिरण्यकशिपुका हृदय फाड़कर प्रह्लादकी प्रह्लाद की रक्षा की, (आज) उसी भुजाको भुजा को पकड़कर व्रजकी व्रज की नारियाँ कहती हैं- `लाल! खड़ा तो हो जा!' जिसको देवता और मुनि ध्यानमें ध्यान में भी नहीं पाते, शंकरजी शंकर जी जिनसे समाधि (चित्तकी चित्त की पूर्ण एकाग्रता) नहीं हटा पाते, सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि वही प्रभु गोकुलके गोपोंमें गोकुल के गोपों में क्रीड़ा करनेके करने के लिये इस व्रजभूमिमें व्रजभूमि में प्रकट हुए हैं ।