Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Po...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
बिना काम के
ढीला कालू
मुट्ठी झरती बालू

तीन दिनों से
आटा गीला
हुआ भूख से
बच्चा पीला

जो भी देखे
घूरे ऐसे
ज्यों शिकार को भालू

श्रम की मंडी
खड़ा कमेसुर
बहुत जल्द
बिकने को आतुर

भाव
मजूरी का गिरते ही
पास आ गए लालू

बीन कमेसुर
रहा लकड़ियां
तार-तार हैं
मन की कड़ियां

भूने जाएंगे
अलाव में
नई फसल के आलू
</poem>
273
edits