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|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
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<Poem>
सत्ता पर काबिज होने को
जुगत भिड़ाते दल
करें सियासी सौदेबाजी
जनता में हलचल
हवा चुनावी गाँव-शहर में
डोले-बतियाये
खलनायक भी नायक बनकर
मंचों पर छाये
बड़े-बड़े मिल वादे करते
भरके गंगाजल
इन सीधी-सादी नष्लों को
खांचों में बाँटा
फूल रखे अपनी झोली में
औरों को कांटा
वोट-नोट की राजनीति में
शुचिता गयी निकल!
वही चुनावी मुद्दे लेकर
ये घर-घर आये
सकारात्मक बदलावों के
सपने दिखलाये
दल-दल के अपने प्रपंच हैं
अपने-अपने छल
</poem>