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प्रयास / अवनीश सिंह चौहान
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04:05, 19 मार्च 2012
उन राहों पर भी
जिनमें कंटक छहरे
तोड़ सकूँ
चट्टान
चट्टानों
को भी
गड़ी हुई जो गहरे
चलकर जीवन-जल दूँ
दबे और कुचले पौधों को
हरा-भरा नव-दल दूँ
हर विपदा में-
Abnish
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