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08:22, 19 मार्च 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान
|संग्रह=
}}
<poem>
गटक रहे हैं
लोग यहाँ पर
विज्ञापन की गोली
एक मिनट में
दिख जाती है
दुनिया कितनी गोल
तय होता है
कहाँ -कहाँ कब
किसका कितना मोल
जाने कितने
करतब करती
विज्ञापन की टोली
चाहे या
ना चाहे कोई
मन में चाह जगाती
और रास्ता
मोड़-माड़ कर
घर अपने ले जाती
विज्ञापन की
अदा निराली-
बन जाती हमजोली
ज्ञानी अपना
ज्ञान भूलकर
मूरख बन ही जाता
मूरख तो
मूरख ही ठहरा
कहाँ कभी बच पता
सबके काँधे
धरी हुई है
विज्ञापन की डोली
</poem>