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11:37, 10 अप्रैल 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=|संग्रह=हवाओं के साज़ पर / 'अना' क़ासमी
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<poem>
शाम के शाने1 से जब आँचल ढले
चाँदनी के रथ पे तुम आना चले
रात कच्ची नींद में तुझको जगाऊँ
तू हिनाई हाथ से आँखें मले
तू सुरूरे-रक्स2 में बलखाये या
चाँद लहरों के तले अँगड़ाई ले
हो चले नासूर जब ज़ख़्मे उमीद
तब तेरी आवाज़ के नश्तर चले
हम फ़क़ीरों की कहाँ मंज़िल यहाँ,
मरहले3 दर मरहले दर मरहले
आओ चक्कर बिस्तरे-ख़ाकी पे सोयें
नीलगूँ आकाश के साये तले
चढ़ रहे हैं यास के साये बहुत
यूँ सिमटते जा रहे हैं फ़ासले
आप कैसे शायरों के ग़ोल में
आदमी तो आप थे अच्छे भले
</poem>
1. धरती 2. न्याय 3. जादूगरनी 4. पुनरावृत्ति 5. छंद मापन विधि 6. श्रेष्ठ
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