|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
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नीन्द की छतरियाँ
कई रंगों और नाप की हैं।
मुझे तो वह नीन्द सबसे पसन्द है
जो एक अजीब हल्के गरु उतार में
धप से उतरती है
पेड़ से सूखकर गिरते आकस्मिक नारियल की तरह
एक निर्जन में।
या फिर वह नीन्द
जो गिलहरी की तरह छोटी चंचल और फुर्तीली है।
या फिर वह
जो कनटोप की तरह फिट हो जाती है
पूरे सर में।
नीन्द की छतरियाँ<br>कई रंगों और नाप की हैं।<br>मुझे तो वह नीन्द सबसे पसन्द है<br>जो एक अजीब हल्के गरु उतार में<br>धप से उतरती है<br>पेड़ से सूखकर गिरते आकस्मिक नारियल की तरह<br>एक निर्जन में।<br>या फिर वह नीन्द<br>जो गिलहरी की तरह छोटी चंचल और फुर्तीली है।<br>या फिर वह <br>जो कनटोप की तरह फिट हो जाती है<br>पूरे सर में।<br><br> एक और नीन्द है<br>कहीं समुद्री हवाओं के आर्द्र परदे में<br>पालदार नाव का मस्तूल थामे<br>इधर को दौड़ी चली आती<br>इकलौती<br>मस्त अधेड़ मछेरिन। <br/poem>