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कुछ चले हें,कुछ बढ़े हें / राजेश शर्मा
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11:25, 12 अप्रैल 2012
एक ही संतान तक ,पहुंचे नहीं हैं हम अभी .
भावनाएं हैं बहुत, गौरव कथाएँ याद
हैंए
हैं
,
पर न जाने भीड़ में ये कौन सा उन्माद है,
प्रार्थना हैं,अजानें, आरतीं हैं, हाँ मगर,
राजेश शर्मा
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