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अपनी तस्वीर / मंगलेश डबराल

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|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
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 <poem>
यह एक तस्वीर है
 
जिसमें थोड़ा-सा साहस झलकता है
 
और ग़रीबी ढँकी हुई दिखाई देती है
 
उजाले में खिंची इस तस्वीर के पीछे
 
इसका अँधेरा छिपा हुआ है
 
इस चेहरे की शांति
 
बेचैनी का एक मुखौटा है
 
करुणा और क्रूरता परस्पर घुलेमिले हैं
 
थोड़ा-सा गर्व गहरी शर्म में डूबा है
 
लड़ने की उम्र जबकि बिना लड़े बीत रही है
 
इसमें किसी युद्ध से लौटने की यातना है
 
और ये वे आँखें हैं
 
जो बताती हैं कि प्रेम जिस पर सारी चीज़ें टिकी हैं
 
कितना कम होता जा रहा है
 
आत्ममुग्धता और मसखरी के बीच
 
कई तस्वीरों कि एक तस्वीर
 
जिसे मैं बार-बार खिंचवाता हूँ
 
एक बेहतर तस्वीर खिंचने की
 
निरर्थक-सी उम्मीद में
 
(1990-1993)
</poem>
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