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सपने की कविता / मंगलेश डबराल

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|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
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 <poem>
सपने उन अनिवार्य नतीजों में से हैं जिन पर हमारा कोई नियंत्रण
 
नहीं होता । वे हमारे अर्धजीवन को पूर्णता देने के लिए आते हैं । सपने
 
में ही हमें दिखता है कि हम पहले क्या थे या कि आगे चलकर क्या
 
होंगे । जीवन के एक गोलार्ध में जब हम हाँफते हुए दौड़ लगा रहे
 
होते हैं तो दूसरे गोलार्ध में सपने हमें किसी जगह चुपचाप सुलाए
 
रहते हैं ।
 
सपने में हमें पृथ्वी गोल दिखाई देती है जैसा कि हमने बचपन की
 
किताबों में पढ़ा था । सूरज तेज़ गर्म महसूस होता है और तारे अपने
 
ठंढे प्रकाश में सिहरते रहते हैं । हम देखते हैं चारों ओर ख़ुशी के पेड़ ।
 
सामने से एक साइकिल गुज़रती है या कहीं से रेडियो की आवाज़
 
सुनाई देती है । सपने में हमें दिखती है अपने जीवन की जड़ें साफ़
 
पानी में डूबी हुईं । चाँद दिखता है एक छोटे से अँधेरे कमरे में चमकता
 
हुआ ।
 
सपने में हम देखते हैं कि हम अच्छे आदमी हैं । देखते हैं एक पुराना
 
टूटा फूटा आईना । देखते हैं हमारी नाक से बहकर आ रहा ख़ून ।
 
(1990)
</poem>
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