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अस्वीकरण
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प्रेम / सुमन केशरी
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12:05, 15 अप्रैल 2012
अब वे शब्द मेरे भी उतने ही
जितने तुम्हारे
या शायद अब वे मेरे ही हो
गये
गए
हैं-- गर्मजोशी से थामे हाथ ।
</poem>
अनिल जनविजय
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