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|रचनाकार=गीत चतुर्वेदी
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जाने कितनी बार टूटी लय
 
जाने कितनी बार जोड़े सुर
 
हर आलाप में गिरह पड़ी है
 
कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं
 
और कभी बैठे-बैठे ही टप् से गिर पड़े
 
मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि उसे दया आ गई
 
और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया
 
थोड़ी-सी हँसी चुराई
 
सबने कहा छोड़ो भी
 
और हमने छोड़ दिया
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