Changes

}}
[[Category:दोहे]]
<poeMpoem>पंडिअ सअल सत्थ बक्खाणइ।
देहहि बुध्द बसंत ण जाणइ॥
तरूफल दरिसणे णउ अग्घाइ।
पेज्ज देक्खि किं रोग पसाइ॥
</poeM>
 भावार्थ : पंडित सकल शास्त्रों की व्याख्या तो करता है, किंतु अपने ही शरीर में स्थित बुध्द (आत्मा) को नहीं पहचानता। वृक्ष में लगा हुआ फल देखना उसकी गंध लेना नहीं है। वैद्य को देखने मात्र से क्या रोग दूर हो जाता है?)</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,331
edits