सूर स्याम कत करत अचगरी, बार-बार बाम्हनहि खिझायौ ॥<br><br>
भावार्थ ;-- श्रीयशोदाजी श्रीयशोदा जी के मायकेसे मायके से एक ब्राह्मण (गोकुल) आये । व्रजके व्रज के घर-घर वे नन्दरायजी नन्दराय जी के महलका महल का पता पूछ रहे थे और यह सुनकर कि उनके पुत्र हुआ है वे दौड़े आये थे । (शीघ्र ही) वे श्रीनन्दजी श्रीनन्द जी के द्वारपर द्वार पर आ पहुँचे । उन्हें देखकर माता यशोदाको यशोदा को बड़ा आनन्द हुआ । उनके चरण धोकर घरके घर के भीतर उन्हें बैठाया और उनके भोजनके भोजन के लिये अपना निजी कमरा लिपवा दिया । फिर बोलीं- `आपकी जो इच्छा हो, वह भोजन बना लें । यह सुनकर विप्रका विप्र का मन अत्यन्त हर्षित हुआ । वे बोले-`बहुत अवस्था बीत जानेपर जाने पर विधाता अनुकूल हुए; यशोदाजीयशोदा जी! तुम धन्य हो जो ऐसा (सुन्दर) पुत्र तुमने उत्पन्न किया ।' (यशोदाजीयशोदा जी) गाय दुहवाकर दूध ले आयीं, ब्राह्मणने ब्राह्मण ने बड़ी प्रसन्नतासे प्रसन्नता से खीर बनायी । घी, मिश्री मिलाकर खीर परोसकर भगवान् कृष्णको कृष्ण को भोग लगानेके लगाने के लिये ध्यान करने लगे । फिर जब नेत्र खोलकर ब्राह्मण देवताने देवता ने देखा तो कन्हाई भोजन करते दिखलायी पड़े । (वे बोले -) `यशोदाजीयशोदा जी! आकर अपने पुत्रकी पुत्र की करतूत (तो) देखो इसने बना-बनाया भोजन आकर जूठा कर दिया । व्रजरानी ने दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना की (कि बालक को क्षमा करें और दुबारा भोजन बना लें) । फिर बहुत-सा घी, मिश्री, दूध मँगा दिया । सूरदासजी सूरदास जी (के शब्दोंमें शब्दों में यशोदाजी कृष्ण से) कहती हैं - श्यामसुन्दर! यह लड़कपन क्यों करते हो ? बार -बार तुमने ब्राह्मणको ब्राह्मण को खिझाया (तंग किया) है ।