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भगवान स्वरूप कटियार / परिचय

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/* आत्म-कथ्य */
<poem> '''(कविता के प्रति)'''
कविता शून्य के प्रति एक प्रार्थना और अनुपस्थिति के साथ एक संवाद है । वह यात्राओं पर निकल जाने का निमंत्रण और घर की ओर लौटने की तड़प है । कविता मनुष्य होने की बुनियादी शर्त है और कविता मनुष्य की मात्र भाषा है । कविता मनुष्य को जीने का तर्क और मक़सद देती है । कविता दिल से उठती है और दिल में उतरती हुई मस्तिष्क को झकझोर देती है । कविता ही एक उम्मीद है जो ज़िन्दा शब्द है । कविता रिश्तों की गर्मी, प्रेम की कोमलता और संवेदना की गहराई सँजोए हुए एक ज़िद की तरह मनुष्यता को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रही है । साहित्य की सामजिक भूमिका एवं लोकतांत्रिक चिन्तन के क्षेत्र में एक धारदार औज़ार की तरह काम करती है ।
कविता शून्य के प्रति एक प्रार्थना और अनुपस्थिति के साथ एक संवाद है । वह यात्राओं पर निकल जाने का निमंत्रण और घर की ओर लौटने की तड़प है । कविता मनुष्य होने की बुनियादी शर्त है और कविता मनुष्य की मात्र भाषा है । कविता मनुष्य को जीने का तर्क और मक़सद देती है । कविता दिल से उठती है और दिल में उतरती हुई मस्तिष्क को झकझोर देती है । कविता ही एक उम्मीद है जो ज़िन्दा शब्द है । कविता रिश्तों की गर्मी, प्रेम की कोमलता और संवेदना की गहराई सँजोए हुए एक ज़िद की तरह मनुष्यता को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रही है । साहित्य की सामजिक भूमिका एवं लोकतांत्रिक चिन्तन के क्षेत्र में एक धारदार औज़ार की तरह काम करती है । [[पाब्लो नेरूदा]] के शब्दों में,"कविता में अवतरित मनुष्य बोलता है कि वह अब भी बचा हुआ एक अन्तिम रहस्य है ।  कविता के केन्द्र में सदैव मनुष्य और मनुष्य और मनुष्यता ही रहती है, इसलिए वह मनुष्य से जुड़े सभी सवालों को सम्बोधित करती है ।  जनकवि [[धूमिल]] के शब्दों में, "कविता भाषा में आदमी होने की तमीज़ है"।
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