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आदमी / कुँअर रवीन्द्र

9 bytes removed, 16:30, 19 अप्रैल 2012
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आजकल मैं /एक ही बिम्ब में /सब कुछ देखता हूँ /एक ही बिम्ब में ऊंट और पहाड़ को /समुद्र और तालाब को /मगर आदमी /मेरे बिम्बों से बाहर छिटक जाता है /पता नहीं क्यों /
आदमी बिम्ब में समा नहीं पता है ?
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