1,159 bytes added,
12:16, 30 अप्रैल 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= भावना कुँअर }}
[[Category: हाइकु]]
<poem>
21
दीपक जला
रौशन हर दिशा
अँधेरा टला।
22
प्रेम की बूँदें
भीगे धरा, गगन
महके मन।
23
रजनी भर
रोता रहा अँधेरा
रूठी चाँदनी।
24
दुःखी दो तट
सौतन बनी झील
मिलेंगे कब ?
25
ओस के मोती
शृंगार जब करें
मोती -से झरें।
26
रौंदती जाएँ
कलियों का बदन
गर्म हवाएँ।
27
काली ये रात
लील रही खुशियाँ
आया न प्रात।
28
टूटा है नीड़
उदास है चिड़िया
खुश है चील।
29
रखती रही
अँधेरी अटारों पे
रोशनी मोती।
30
खुद में ऐसे
इन्द्रधनुष रंग
भरता कैसे?
-0-
</poem>