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जोरि कर बिधि कौं मनावति, पुरुष नंद-कुमार ॥<br><br>
व्रजके व्रज के घर-घरमें घर में यह चर्चा चलने लगी कि नन्दनन्दन साथमें सखाओंको नन्द-नन्दन साथ में सखाओं को लेकर चोरीसे मक्खनखाते चोरी से मक्खन खाते हैं । कोई गोपी कहती है--`मेरे घरमें घर में अभी दौड़कर दौड़ कर घुस गये थे । ` कोई कहती है -`मुझे द्वारपर द्वार पर देखकर (जिधरसे जिधर से आये थे) उधर ही भाग गये ।' कोई कहती है-`मैं कैसे अपने घरमें घर में उन्हें देखूँ? और श्यामसुन्दर जितना खायँ, भली प्रकार देखकर उतना ही अच्छा मक्खन उन्हें दूँ?' कोई कहती-` यदि मैं देख पाऊँ तो दोनों भुजाओंमें भरकर भुजाओं में भर कर पकड़ लूँ।' कोई कहती है -`मैं बाँधकर बाँध कर रख लूँ, फिर उन्हें कौन छुड़ा सकता है?' सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी से मिलने के लिये सब अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार विचार करती हैं और दोनों हाथ जोड़कर विधातासे विधाता से मनाती हैं -`हमें नन्दनन्दन नन्द-नन्दन ही पतिरूपमें पति-रूप में मिलें ।'
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