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/* नवीनतम विधा है हाइकु */
यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दी साहित्य और भारतीय कला जगत रचनात्मकता के लिये सीमा के किसी बंधन को नहीं मानता । भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही प्रवासियों द्वारा कला के विभिन्न स्वरूपों को आत्मसात किया गया है।
* हिन्दी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में से एक नवीनतम विधा है हाइकू । हाँलांकि यह विधा लगभग एक शताब्दी पूर्व सन् 1919 में कविवर [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के द्वारा अपनी जापान यात्रा से लौटने के पश्चात उनके ‘जापान यात्री’ में प्रसिद्ध जापानी हाइकु कवि बाशो की हाइकु कविताओं के बंगला कविताओं के अनुवाद के रूप में सर्वप्रथम हिन्दुस्तानी धरती पर अवतरित हुई परन्तु इतने पहले आने के बावजूद लंबे समय तक यह साहित्यिक विधा हिन्दुस्तानी साहित्यिक जगत में अपनी कोई विशेष पहचान नहीं बना सकी;क्योंकि वहअनुवाद था हाइकु नहीं । इतना ज़रूर ध्यान रखना चाहिए कि किसी हाइकु रचना का अनुवाद एक अलग बात है , उस अनुवाद को हाइकु नहीं कहा जा सकता अत: गुरुदेव द्वारा किए गए अनुवाद हाइकु नहीं हैं ।
* हिन्दी में [[हाइकु / अज्ञेय| हाइकु ]] की प्रथम चर्चा]] का श्रेय [[अज्ञेय]] को दिया जाता है, उन्होंने [[हाइकु]] सी लगनी वाली अनेक रचनाएँ लिखी हैं जिन पर लगातार शोध जारी है। [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] के अनुसार - ''अज्ञेय जी की ये प्रस्तुत रचनाएँ [[हाइकु]] के छन्द-विधान पर खरी नहीं उतरती । श्रद्धा के वशीभूत होकर इन्हें [[हाइकु]] कहना समीचीन नहीं होगा।''
* वर्तमान में संसार भर में फैले हिंदुस्तानियों की इन्टरनेट पर फैली रचनाओं के माध्यम से यह विधा हिन्दुस्तानी कविता जगत में ही नही वरन् विभिन्न देशों में हिन्दी काव्य -जगत् में प्रमुखता से अपना स्थान बना रही है।