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15:12, 18 मई 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
}}
[[Category: चोका]]
<poem>
खाक़ थी छानी
वीरानों की हमने
कभी भटके
मोड़ पर अटके
कोई न भाया,
भरी भीड़ में तब
तुमको पाया ।
तुम कहाँ छुपे थे ?
यूँ बरसों से ,
खुशबू बनकर,
दूध-चाँदनी,
कभी भोर का तारा,
नभ-गंगा से
कभी रूप दिखाया ।
किया इशारा
तुम ही थे अपने
अन्तर्मन से
सुख-दु:ख के साथी
प्राणों की ऊष्मा
बनकर के आए
भर गले लगाया ।
-0-
</poem>