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05:32, 30 सितम्बर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
|संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर सिंह
}}
आप भी किस हवा में हैं, शमशेर !
आप और शेर का यह कारोबार ! !
माना, माना, माना कि शेरो-फ़ने लतीफ़
आप की जान है मगर सरकार--
आप की जान की है क्या क़ीमत !
आप जैसे पड़े हुए हैं हज़ार !
और ही मंज़िलें हैं ये, साहब
जिनको आसाँ नहीं है करना पार !
आपकी राह दूसरी है, जनाब
शाहराहों से आपको सरोकार ?
और ही - सी हैं आपकी गलियाँ !
और ही - से हैं कूचओ - बाज़ार
देस तो एक ही है हम सब का;
मगर इसमें है एक ही तक़रार
किसका पहले है किसका पीछे है
कौन बा-कार कौन है बेकार;
कौन आगे है और मौज में है--
कौन पीछे है और ख़स्तओ-ज़ार
कहाँ बंदा ग़रीब ख़ानाबदोश
कहाँ आली-जनाब, आली बेक़ार !
हम तो 'शमशेर' वह फ़साना हैं
जिसका सुनना - सुनाना है बेकार !