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मान रे ! मान मान, मन मान / शिवदीन राम जोशी
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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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शिवदीन सतगुरू प्यार देरहे, सब सारन का सार देरहे,
काया माया छलकर सबका, हर लेती है प्रान।
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आशिष पुरोहित
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